लेखक के मन की कहानी

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लेखक के मन की कहानी 

लेखक के मन की कहानी एक ऐसी मार्मिक घटना पर आधारित है। जिससे प्रत्येक लेखक की लेखनी को रुबरु होना पड़ता है। यह लेखक के मन की दशाओं को और अधिक गहराई से जानने के विषय से भी संम्बधित है। लेखक के मन में विचारों का एक समुद्र समाहित होता है और इसका समुद्र मंथन करने पर ही लेखक को अमृत कलश की प्राप्ति होती है। ऐसी ही एक कहानी से हम आपका परिचय करवाना चाहते हैं। जिसने एक छोटी सी घटना को एक कहानी में परिवर्तित कर दिया और कहानी के पात्र को सकारात्मक दिशा के पथ पर बढ़ते जाने को प्रेरित किया। यह कहानी राजीव नाम के एक लड़के की है। जो एक प्रारम्भिक अवस्था का लेखक है। अभी वह लेखनी के पथ का एक नया पथिक है और इस पथ के विषय में उसका ज्ञान काफी कम है। उसकी इस अवस्था को आप यूंँ समझ सकते है। जैसे कोई गाँव में रहने वाला व्यक्ति नया-नया शहर में आया हो। शहर के तौर तरीकों और शहर के रंग ढंग से बिलकुल अंजान। उसके ज्ञान के विषय में तो हमने आपको बता दिया। अब उसके मन की गहराई से भी आपका परिचय इस कहानी के माध्यम से करवाते है। 

राजीव शहर की एक दुकान में काम करता है और शहर में किराये के मकान में रहता है। उसके माँ-बाप गाँव में रहते है और वही पर खेती-किसानी करते है। राजीव अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए दिन में काम करता है और रात में अपने सपनों के जालों को बुनता था। वैसे तो दुनिया में हर इंसान का कोई न कोई सपना जरूर होता है और उसको पूरा करने के लिए हर इंसान अपनी-अपनी तरह से मेहनत भी करता है। हर सपना देखने में तो अच्छा लगता है। मगर उसको पूरा करने के लिए इंसान को किन मुश्किलों से रुबरू होना पड़ता है। ये तो सपना देखने वाला और उसको पूरा करने वाला ही बेहतर तरीके से जानता है। राजीव की ज़िन्दगी भी उसके सपनों के जाल में दुनिया की तरह ही गोल-गोल घूम रही थी। कभी जाले का एक सिरा पकड़ कर कभी इधर और कभी दूसरा सिरा पकड़ कर उधर। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वो अपने सपनों के जाल का कौन सा सिरा पकड़ कर चले। जो उसे उसकी मंजिल तक पहुंचा दे। वैसे गौर से देखा जाए तो दुनिया का हर इंसान अपने-अपने सपनों के साथ इस मकडी़ के जाल में फंसा हुआ है और इस जाल से बाहर निकलने का रास्ता खोज रहा है। जिससे उसके सपने पूरे हो सके। सभी मकडी़ के जाल के बीच में गोल-गोल घूम रहे है। जैसे कि इस कहानी का पात्र राजीव घूम रहा है। राजीव की तरह ही सब एक सही सिरे की तलाश में है। जो उन्हें इस जाल से बाहर सफलता और अपने सपनों की मंजिल तक पहुंचा सके। लेकिन सफलता और सपनों की मंजिल इतनी आसान नहीं होती है। इसके लिए आपको इस जाल के सही सिरे की पहचान करके उसके अंतिम सिरे की ओर बढ़ते रहना होता है। सफलता और सपनों की मंजिल कभी भी अचानक से नहीं मिलती। इसके लिए एक सिरे से दूसरे सिरे तक, दूसरे से तीसरे तक और ऐसे ही क्रम में आगे बढ़ते जाने से सफलता और सपनों का यह सफर एक दिन पूरा हो जाता है। राजीव को भी इसका एहसास उस घटना से हुआ। जो उसके जीवन में घटित हुई और उस एक घटना ने उसकी सोच को सकारात्मक दिशा दिखा दी और वह अपने सपनों की मंजिल की ओर बढ़ चला। 


आज रविवार का दिन है और राजीव के काम की छुट्टी है और वो अपने मोबाइल फोन में कुछ कहानियों को पढ़ रहा है। फेसबुक पर राजीव लेखकों के एक पेज से जुड़ा हुआ है और उसमें नये-नये लेखकों की कहानियों को पढ़ने के साथ ही वह अपनी लिखी हुई कहानियां भी उस पेज पर शेयर किया करता था। उस फेसबुक पेज की कहानियों में से कुछ कहानियों को बहुत ज्यादा लाइक और शेयर किया जा रहा था और उन कहानियों के लेखकों को अच्छे आफर भी मिल रहे थे। राजीव जो कहानी पढ़ रहा था। वो कहानी खत्म हो चुकी है और घड़ी में 2 बजकर 30 मिनट हो चुके है। अब राजीव को लगता है कि थोड़ा आराम कर लेना चाहिए क्योंकि शाम को उसे पार्क में टहलने जाना है और वो बिस्तर पर लेट जाता है। उसकी आँखों में नींद तो नहीं थी। पर खुली आँखों से वो एक सपना देख रहा था। उसकी नजर घड़ी के काँटों पर थी। जो धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे। उसे घड़ी की सेकंड वाली सुई पर खड़े वो लेखक दिखाई दे रहे थे। जिनकी कहानियों को फेसबुक पेज पर ज्यादा लाइक और शेयर मिल रहे थे। उसे लग रहा था। जैसे उन लेखकों का सही समय आ चुका है और वह सफलता के करीब है और घड़ी के सेकंड का काँटा जो एक सेकंड चलने के बाद कुछ पल के लिए रुकता है। उन लेखकों को उनकी मंजिल पर उतारता हुआ। आगे बढ़े जा रहा है। राजीव ये सोच रहा था कि उसका समय कब आयेगा जब वह एक बेहतरीन कहानी लिखेगा। जिसे उस फेसबुक पेज पर ज्यादा लाइक और शेयर मिल जाए और वह अपनी मंजिल के करीब पहुंच जाएं। ऐसा सोचते-सोचते ही घड़ी में शाम के 4 बजकर 30 मिनट हो चुके थे। मुंह-हाथ धोकर और तैयार होकर राजीव पार्क की ओर चल पड़ा। पार्क के अंदर पहुंच कर राजीव ने कुछ देर तक टहलना शुरू किया और टहलने के बाद राजीव पार्क के एक कोने पर बनी बेंच पर बैठ जाता है। जहाँ राजीव बैठा है। उससे थोड़ी दूरी पर ही एक लड़का बच्चों के खिलौने बेच रहा है। उस लड़के ने खिलौने एक बड़ी सी पेटी में सजा रखे है और खिलौने की पेटी के अगल-बगल काफी सारे बच्चे अपनी-अपनी पसंद के खिलौने देख रहे है और कुछ बच्चों के माँ-बाप अपने बच्चों को उनकी पसंद के खिलौने खरीद कर दे रहे है। राजीव उन बच्चों, उनके माँ-बाप और खिलौने बेचने वाले लड़के के मनोभावों को ध्यान से देख रहा है और उनके मनोभावों का अपने मन में विश्लेषण कर रहा है। तभी अचानक उसके फोन की घंटी बजने लगी। राजीव ने फोन उठाया तो दूसरी तरफ से जिस दुकान पर राजीव काम करता था। उसके मालिक की आवाज़ आई और दुकान के मालिक ने उसे कल को आधा घंटा पहले आने को कहा। राजीव ने जी सर मैं कल आधे घंटे पहले पहुँच जाऊगा। ऐसा कहते हुए फोन रख दिया। राजीव को यह एहसास नहीं था कि जो सपना वो दिन में बिस्तर पर लेट कर देख रहा था। उस सपने में घड़ी के काँटे पर अब उसके चढ़ने का समय आ चुका था और समय का वो काँटा उसे उसकी मंजिल की ओर ले जाने के लिए अब चल पड़ा था। राजीव इस बात से भी अंजान था कि वो घड़ी के सबसे छोटे कांटे पर सवार था। जो उसे उसकी मंजिल तक पहुंचाने में 12 घंटे का वक़्त लेने वाला था और इन 12 घंटो में उसके जीवन में कुछ ऐसा घटनाक्रम घटित होने वाला था। जो उसकी सोच को एक सही दिशा दिखाकर उसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेगा। घड़ी के काँटों की तरह ही राजीव भी अब पार्क से अपने कमरे की ओर धीरे-धीरे चलने लगा। कमरे में पहुँच कर राजीव ने थोड़ा पानी पिया और कुर्सी पर बैठ गया। उसका मन अभी खिलौने बेचने वाले लड़के और वहां मौजूद बच्चों के विचारों में डूबा हुआ था और उन विचारों में वो अपनी एक नई कहानी की पटकथा खोज रहा था। राजीव ने कुछ समय वही बैठे-बैठे गुजारा। मगर कहानी की पटकथा का कोई एक सिरा भी वो खोज नहीं पाया। अचानक उसे याद आया कि कल तो काम पर आधे घंटे पहले जाना है और वो कुर्सी से उठकर रोजाना की तरह ही अपनी दिनचर्या के कामों में व्यस्त हो गया। 

सोमवार की सुबह हो चुकी है और सूरज भी अपनी किरणों से उजाला फैलाता हुआ अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहा है। राजीव के जीवन में भी आज उजाला होने वाला है क्योंकि कुछ ऐसी घटनाएं उसका इंतजार कर रही है। जिनके घटने से राजीव को एक नई दिशा मिलने वाली थीं। हमेशा से ही कहा जाता है कि उजाला होने से पहले बहुत अंधेरा होता है और अंधेरा छ़टते ही रोशनी की किरणें अंधेरे को उजालों में परिवर्तित कर देती है। ऐसी ही एक रोशनी की किरण राजीव के जीवन में आने वाली थी। जो उसके जीवन को परिवर्तित करने वाली थीं। राजीव आधे घंटे पहले दुकान पर पहुंच जाता है और थोड़ी देर बाद उसके साथ में काम करने वाले चार लड़के भी वहां पहुंच जाते है। उनमें से एक लड़के के पास दुकान की चाबी रहती है क्योंकि वो रोज ही दुकान खोलता और बंद करता है। वो लड़का दुकान का शटर खोलता है और सभी दुकान के अंदर पहुंच जाते है। कुछ देर बाद दुकान का मालिक भी वहां पहुंच जाता है और सब लड़कों से कहता है कि थोड़ी देर बाद कुछ सामान बिक्री के लिए आज आने वाला है। उसे सही तरीके से व्यवस्थित करके दुकान में लगाना है। बिक्री के लिए आने वाला सामान अब दुकान में पहुँच गया है और सभी ने उसको सही तरीके से व्यवस्थित करके लगा दिया है। ग्राहक अब दुकान में पहुँचने लगे थे इसीलिए राजीव और उसके साथ के सब लड़के अपने-अपने कामों में व्यस्त हो जाते है। समय का पहिया भी धीरे-धीरे चल कर उस मुकाम तक पहुंच गया। जब राजीव की ज़िन्दगी बदलने वाली थी। दोपहर के 3 बज चुके थे और राजीव ग्राहकों को सामान दिखा रहा था। तभी अचानक कुछ टूटने की आवाज़ आई। राजीव ने गौर से देखा तो ग्राहक से अनजाने में वो सामान टूट गया था। जो राजीव ग्राहक को दिखा रहा था। उस सामान की कीमत लगभग 2000 रुपये थी। अब राजीव और उस ग्राहक में बहस होने लगी कि 2000 रुपये के सामान की भरपाई कौन करेगा। ग्राहक अपनी गलती मानने को तैयार नहीं था और राजीव को ही सामान के टूटने के लिए जिम्मेदार बता रहा था। दोनों में तीखी बहस चल ही रही थी। तभी दुकान का मालिक भी पहुंच जाता है और दोनों की बातों को सुनकर मामले को सुलझाने की कोशिश करता है। कुछ देर चली बातचीत के बाद ये तय हो जाता है कि दोनों आधा-आधा नुकसान की भरपाई करेंगें। ग्राहक अपने हिस्से के 1000 रुपये दुकान के मालिक को देकर वहां से चला जाता है और दुकान का मालिक राजीव की पगार से 1000 रुपये काट लेगा। ये बात बताते हुए अपनी जगह वापस चला जाता है। राजीव का मन थोड़ा दुखी हो जाता है क्योंकि ग्राहक की गलती की वजह से उसकी पगार से 1000 रुपये कटने वाले थे। राजीव मन ही मन में सोच रहा था कि ना जाने आज वो किसका मुंह देखकर घर से निकला था। जो आज उसका दिन ख़राब हो गया और उस ग्राहक पर भी उसको गुस्सा आ रहा था। जिसकी वजह से उसकी पगार से 1000 रुपये कटने वाले थे। उसका मन अब काम में लग नहीं रहा था और वो अनमने ढंग से काम कर रहा था। वो सोच रहा था कि एक तो वैसे ही पगार कम है। उसपर से 1000 रुपये कटने से उस पर और आर्थिक बोझ पड़ जाएगा। इसलिए उसका मन खिन्न और उदास था। 

राजीव अनमने और उदास मन से ही आज अपने कमरे में पहुंचा था। शाम हो चुकी थी और वो अब उसी पार्क की ओर चल पड़ा। पार्क में कुछ देर टहलने के बाद वो उसी बेंच पर बैठ गया। जहां कल बैठा हुआ था। सामने वही लड़का अपने खिलौने की पेटी के साथ खड़ा था। आज उसकी खिलौने की पेटी के अगल-बगल बच्चे नहीं थे और वो अपने खिलौनों के खरीदारों का इंतजार कर रहा था। राजीव का मन भी आज उदास सा था और वो वही बैठे-बैठे किसी सोच में डूबा हुआ था। तभी एक आवाज़ आई "मनीष बेटा ऐसी उदास शक्ल मत बना चल तूझे तेरी पसंद के खिलौने खरीद देती हूँ इधर आ जा"। राजीव का ध्यान उस ओर गया जहां से आवाज़ आ रही थी। राजीव ने अपनी दायीं ओर मुड़कर देखा तो एक बच्चा अनमने और उदास मन से चल रहा था और उसके पीछे-पीछे उसकी माँ उसको पुकारते हुए चल रही थी। उस बच्चे का नाम मनीष है और उसकी माँ कुछ कदम तेज चलकर बच्चे को पकड़ लेती है और उसे अपने साथ लेकर खिलौने बेचने वाले लड़के के पास पहुँच जाती है। खिलौने बेचने वाला लड़का, वो बच्चा जिसका नाम मनीष है और उसकी माँ, अब तीनों राजीव की नजरों के ठीक सामने थे और राजीव के ध्यानाकर्षण का केन्द्र थे। राजीव बड़े गौर से मनीष को देख रहा था। जोकि उदास और अनमना सा लग रहा था। राजीव के मन के तार, मनीष के मन से जैसे उदासी के कारण जुड़ रहे हो क्योंकि आज दोनों ही उदास और अनमने से दिखाई दे रहे थे। भले ही उन दोनों की इस उदासी की वजह अलग हो पर दोनों के मनोभावों में समानता सी दिखाई दे रही थी। राजीव अपनी कहानी की जिस पटकथा की खोज में था। वो शायद खुद चलकर उसके पास आ रही थी और एक ऐसी मार्मिक घटना की ओर ले जा रही थी। जिसका प्रभाव राजीव की सोच को बदलने वाला था। मनीष की माँ खिलौने की पेटी से खिलौने उठाकर मनीष को दिखा रही थी और उससे पूछ रही थी कि "बेटा ये वाला खिलौना पसंद है या फिर ये दूसरा वाला"। "मनीष बिना कोई जवाब दिये बस यूँ ही खड़ा हुआ था और उसकी माँ उस पेटी में से कुछ और खिलौने उठाकर मनीष को दिखाने लग जाती है"। खिलौने बेचने वाला लड़का भी अब पेटी में रखे अच्छे-अच्छे खिलौने उठाकर मनीष और उसकी माँ को दिखाने लगता है। इस उम्मीद में कि शायद उसका कोई खिलौना मनीष को पसंद आ जाए और उसकी माँ खिलौना खरीद ले। लेकिन मनीष को कोई खिलौना पसंद नहीं आ रहा था। वैसे तो अधिकतर बच्चों का मन बहलाने के लिए उन्हें कोई भी खिलौना दे दो तो वो बहल जाते है। मगर मनीष ऐसा बच्चा नहीं था। जिसे जल्दी से कुछ पसंद आ जाए और उसका मन उस में लग जाए।

उदासी भरे मन से मनीष देख तो सारे खिलौने रहा था। जो उसकी माँ और वो लड़का उसे दिखा रहे थे। मगर उसे एक भी खिलौना पसंद नहीं आ रहा था। राजीव ये सारा घटनाक्रम वही बैठकर देख रहा था। राजीव जिस बेंच पर बैठा था। उससे दायीं तरफ थोड़ी दूरी पर ही एक और बेंच थी। जिसपर एक व्यक्ति बैठा हुआ था। उसने मनीष की माँ की ओर देखते हुए आवाज़ लगाई कि " गीता छोड़ दो उसे वही पर, अपने लिए वो खुद कुछ ढूँढ लेगा। जो उसे पसंद होगा। तुम इधर आकर बैठ जाओ"। इधर से मनीष की माँ का जवाब आया "आती हूं "। फिर मनीष की माँ ने उस खिलौने बेचने वाले लड़के से कहा "इसका ध्यान रखना और इसे खुद कोई खिलौना पसंद करने देना। हम उस बेंच पर बैठे है। अगर इसे कोई खिलौना पसंद आयेगा तो मैं उसे खरीद लुंगी"। ऐसा कहते हुए मनीष की माँ मनीष को वही पर छोड़ कर उस बेंच की ओर बढ़ गई जहाँ से उस व्यक्ति ने आवाज़ लगाई थी। राजीव जो इस घटनाक्रम को देख रहा था। वो समझ चुका था कि वो व्यक्ति मनीष का पिता है और ये दोनों अपने बच्चे को साथ लेकर पार्क में घूमने के लिए आये होगें। लेकिन राजीव को मनीष की उदासी का कारण समझ नहीं आ रहा था। वैसे आज तो राजीव भी उदास था। मगर अपनी उदासी की वजह तो वो जानता था। मगर मनीष की उदासी की वजह वो समझ नहीं पा रहा था। अभी भी मनीष वही खड़ा था और खिलौने बेचने वाला लड़का शान्त खड़े होकर मनीष के हावभाव देखने लगा क्योंकि मनीष की माँ ने उससे कहा था कि "इसका ध्यान रखना और इसे खुद कुछ पसंद करने देना" वैसे भी कोई और बच्चे तो आज खिलौने खरीदने आ नहीं रहे थे। ये सोचकर शायद मनीष खुद ही कोई खिलौना पसंद कर ले। वो शान्ति से खड़ा हो गया। शायद राजीव को अपनी कहानी का पात्र मिल गया था। जिसका नाम मनीष है और वो उसकी आंखों के सामने खड़ा था। जो उसकी सोच को बदल कर रखने की क्षमता रखता था और उसको उसके सपनों के जाल का सही सिरा खोजने में मदद करने वाला था। इस कहानी में आगे क्या घटनाक्रम घटित होता है। जिससे राजीव की ज़िन्दगी बदलने वाली है और मनीष कैसे उसकी सोच को एक सही दिशा दिखाता है। जिससे राजीव एक मुस्कराहट के साथ अपनी मंजिल की तरफ़ कदम बढ़ाकर चल पड़ता है और मनीष के चेहरे पर भी एक मुस्कान खिल उठती है। 

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